उम्र-कैद

असत्य के जाल में बंध कर,
अविश्वास की बेड़ियों में उलझ कर,
ईर्ष्या की अग्नि में झुलस कर,
आक्रोश की आंधी में अटक कर,
अपने आस्तित्व को ,
गुंथा लेते हैं सभी,
कहाँ उन्मुक्त हो कर,
उल्हास आने देते हैं सभी?
अपनी ही बनाई सीमाओं में,
बंदी हो जाते हैं सभी,
व्यर्थ ही अपना जीवन
उम्रकैद बना लेते हैं सभी…..