तुम और मैं


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तुम और मैं
अब हम बन
नयी राह पर चल पड़े हैं
तेरे सपने मेरे सपने
अब हम बन
नये आसमां में उड़ चले हैं
अब तू अगर राह के कंकर चुन लेगा
तो रोड़ों को मैं भी दूर करूंगी
राह के गड्ढों को तू पाट देगा
तो खायी मैँ भी नाप लूंगी
ताल में नैय्या तैरा लेगा
तो समुन्दर मैं भी पार करूंगी
तेज़ हवा में लौ बुझने न देगा
तो आँधियों से में भी लड़ सकूंगी
मेरे आंखियों के मोती बिखरने न देगा
तो तेरे हर दुःख का नाश करूंगी
अगर देगा तू साथ सदा
तो हर रिश्ता मैं भी निभा रहूंगी
बस हाथ थामे संग रहना
तू देखना
मैं तुझपर कितना प्यार करूंगी

9 thoughts on “तुम और मैं

  1. साथी और साथ के वलय मे आ कर जिसने ये राह पकडली जो आप ने बताई है तो उसका सफर तो आग के दरिये से भी सुरक्षित निकलेगा. सुंदर भाव है आप की रचना मे.

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