वो मेरा भगवान नहीं 

वो मेरा भगवान नहीं 
जो नन्ही कली का कुचलना 
यूँ ही गुमसुम देखता है 
वो मेरा भगवान् नहीं 
जो बीभत्स दुःकर्मियों  
यूँ ही हाथ बांधे रक्षा करता है 
वो मेरा भगवान नहीं 
यूँ ही जो अधर्म में आँखे मूंदे सोता है 
कैसा इश्वर है 
जो खोखले नारों में जीता है?
जो बेमतलब प्रथाओं में रमता है?
जो निरीह कन्या की पुकार 
को नहीं सुनता है? 
कहाँ है वो इश्वर 
अधर्म मिटाने को जिसने 
हर युग में जन्म लेने 
का किया था प्रण 
कहाँ है वो इश्वर 
जिसने अत्याचार से रक्षा 
का दिया था वचन?
ऐसा अँधा बहरा गूंगा और अपाहिज 
वो मेरा भगवान् नहीं

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