उमड़ घुमड़…

उमड़ घुमड़ कर बादल छाये
संग उनके विचार भी उफनाये
आधे- अधूरे , कच्चे- पक्के
कुछ कचोटते तो कुछ मुस्काते
कुछ आंसू लाते तो कुछ गुदगुदाते
कलम मेरी रुक रुक जाये
क्या लिखूं ऐसा..
जो सभी को भा जाये
सच्चे भाव …….
पर जो न मुझे रुलाए
न किसी और का मन दुखाएं
सभी मेरे अपने हैं
जिनसे दुःख-सुख के
क्षण सभी जुड़े हैं
उनके हाथों में कुछ नहीं…
सारे पल,इश्वर ने गढ़े हैं…
ऐ बादल…..
अपनी बूंदों में बहा
आंसूं सारे ले जा…
कर दे मेरा मन भी हरा…
कर दे मेरा मन भी हरा….

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