वो दिन भी क्या खूब हुआ करते थे
खतों में दोस्तों से रूबरू हुआ करते थे
खत भी हमारे अजीब ही होते थे
लड़कपन के ऊलजलूल ख्वाबों से सजते थे
यूँ ही हंसा जाते थे, तमाम बातें कह जाते थे
कभी शिकायतें कर जाते तो
कभी शेखी बघारने का तरीका तो
कभी छुट्टियों में मिलने की तरकीब बन जाते थे
महीने भर की कहानी सुना जाते थे तो
सालगिरह पर तमाम बधाई दे जाते थे
वो बंद लिफाफे बेक़रार कर जाते थे
अब सब अपनी उलझनों में मशगूल हैं
खतों के सिलसिले लगते फ़िज़ूल हैं
अब डाकिये दस्तक देते नहीं
चिट्ठियों के पुलिंदे लाते नहीं
अब बातें पुरानी हो जाती हैं
उन्हें बांटने की बेसब्री हम दिखते नहीं
अब हम मिलने के मंसूबे बनाते नहीं
shandar
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शुक्रिया
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Very nicely penned, its one of the forgotten art almost.
There was really a charm about writing, receiving and reading the letters.
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Thank you Jyotirmay. Sorry for late response.
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https://sankarshanshukla.wordpress.com/2018/01/27/मेरी-प्यारी-रिम्मी-को-खत/
मैम इसको भी पढ़िए🙏🙏🙏
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